सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई अगले करीब 13 महीने तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर बने रहेंगे। जस्टिस गोगोई सौम्य व्यवहार और कडक़ मिजाज के न्यायाधीश हैं। मुख्य न्यायाधीश पद के लिए सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र ने इनके नाम की सिफारिश केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से की थी जिसपर सहमति हो गई है। जस्टिस गोगोई ने एक अंग्रेजी अखबार में अपने लेख ‘हाउ डेमोक्रेसी डाइज’ में लिखा था कि स्वतंत्र न्यायाधीश और मुखर मीडिया लोकतंत्र की रक्षा करने में सबसे आगे रहते हैं।
दिल्ली में आयोजित तीसरे रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में कहा था कि न्यायपालिका को आम आदमी की सेवा लायक बनाए रखने के लिए सुधार की नहीं बल्कि एक क्रांति की जरूरत है। न्यायपालिका को पवित्र, स्वतंत्र और क्रांतिकारी होना चाहिए। इसलिए न्यायपालिका को और अधिक सक्रिय रहना होगा क्योंकि न्यायपालिका ही लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम रखने की उम्मीद की आखिरी किरण है।
वे मानते हैं कि न्याय खुद को साबित करने वाला नियम नहीं है, बल्कि समाजवाद, लोकतंत्र, समानता और बंधुता जैसे कुछ आदर्शों का मिश्रण है। संवैधानिक इतिहास और सुप्रीम कोर्ट का जिक्र करते हुए इन्होंने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय का लगातार विकास हो रहा है जिसका दृढ़ संकल्प देश के उस नागरिक को हर हाल में समय रहते न्याय देना है जिसकी फरियाद सर्वोच्च या अन्य न्यायालयों तक पहुंची है। आप बेबाकी से कहते हैं कि अदालतों में मुकदमे लड़ रहे लोगों के लिए न्याय दूर की कौड़ी है, जिसे न्याय मिल जाता है अगर न्याय वादी के जीवन में हकीकत में तब्दील न हो जाए और जमीनी स्तर पर लागू न हो सके तो उसका कोई मायने नहीं है।
जस्टिस गोगोई के बारे में कहा जाता है कि उनका फैसला निष्पक्षता को दर्शाता है जो पूरे देश के लिए नजीर होता है।
देशभर के न्यायालयों में न्यायधीशों के खाली पड़े पदों पर चिंता जताते हुए कहा था कि करीब 2.68 करोड़ केस न्यायालयों में लंबित हैं जिससे लोगों को न्याय के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। इस स्थिति से न्यायिक व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। न्याय के प्रति जनता और पीडि़तों का भरोसा कायम रखना है तो लंबित मामलों को जल्द से जल्द निपटाना होगा जिससे आमजन का न्यायपालिका पर भरोसा बना रहे। जस्टिस गोगोई पारदर्शी और खुले विचारों के माने जाते हैं। जब न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी थी तब जस्टिस गोगोई ने अपनी संपत्ति की घोषणा की तो पता चला कि इनके पास अपनी कार तक नहीं है।
जस्टिस गोगोई की पीठ ने ही 27 सितंबर 2013 को फैसला सुनाया था कि ईवीएम और बैलट पेपर पर नोटा का विकल्प हो, जिसके बाद ये व्यवस्था लागू हुई थी। इसी तरह केरल के शोरानूर रेलवे स्टेशन पर पैसेंजर ट्रेन में सौम्या (काल्पनिक) नाम की लडक़ी से रेप और हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रहे मार्कंडे काटजू ने ब्लॉग लिखा तो अवमानना के मामले में इन्होंने उन्हें कोर्ट में बुला लिया था। मामले की सुनवाई में कहा था कि काटजू ने प्रथम दृष्टया अपने ब्लॉग से जजों पर हमला किया है न कि जजमेंट पर। 6 जनवरी 2017 को कोर्ट में माफी मांगने के बाद जस्टिस काटजू पर अवमानना का मामला खत्म हुआ।
सुप्रीम कोर्ट में कई बड़े मसले लंबित हैं जिनपर भविष्य में फैसला आना है। इसमें आधार डेटा, अयोध्या मसला और राजनेताओं पर आपराधिक मामले दर्ज होने पर अयोग्य ठहराने को लेकर तस्वीर साफ होनी है। इन सभी मुद्दों को लेकर देश की नजर रहेगी।
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