🚩⚔️ बीहड़ में गंगा ⚔️🚩 - Silver Screen

🚩⚔️ बीहड़ में गंगा ⚔️🚩

Share This

 🚩⚔️ बीहड़ में गंगा ⚔️🚩


            चंबल घाटी के बीहड़ों का इतिहास सदियों पुराना होने के साथ ही रोचक और रोमांचक भी है, देश की आजादी के बाद "" बागियों"" की चर्चा और लाखन सिंह तोमर के बाग़ी जीवन पर सुनील दत्त की फिल्म "" मुझे जीने दो"" ने पूरे देश ही नहीं दुनिया में चंबल घाटी और घाटी के बीहड़ों को चर्चा का विषय बना दिया थाl दस्यु राज - मान सिंह राठौर,  लाखन सिंह तोमर, रूपा पंडित, लोकमन दीक्षित अमृतलाल माधौ सिंह भदोरिया, मोहर सिंह, नाथू सिंह तोमर और सेना के जवान अंतर्राष्ट्रीय धावक पान सिंह तोमर को दस्युराज के रूप में एक फिल्म" पान सिंह तोमर" के माध्यम से बताने पर कुछ वर्ष पूर्व ही चर्चा का विषय बने हैं ।


            महाराज अनंगपाल तोमर प्रथम से लेकर आनंग पाल द्वितीय तक कुल 19 तोमर वंश के राजाओं ने दिल्ली पर निरंतर शासन किया हैl दिल्ली पर अजमेर के चौहानों का अधिकार हो जाने के बाद दिल्ली के अंतिम तोमर नरेश महाराज अनंगपाल के पुत्र नए राज्य की तलाश में इधर-उधर निकलेl कनिष्ठ पुत्र तेजपाल( कंवरपाल) ने इसवी सन बारह सौ के आसपास राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर मुरैना से लगभग 25 किलोमीटर पूर्व दिशा की ओर चंबल नदी के किनारे"" तँवरगढ़" नामक राज्य की स्थापना कीl इस दुर्ग के भग्नावशेष अभी तक विद्यमान है राजा तेजपाल के बाद क्रमश कमल सी, देव सी, देव वर्मा, तँवर गढ़ के शासक रहेl कालांतर में यशपाल सिंह तँवर गढ़ की गद्दी पर रहा जिसके नाम पर यह राज्य आगे चलकर~ ऐसाह से बढ़कर तंवरघार कहलाया ।

     जैसी की परंपरा रही है दुर्ग की स्थापना के साथ ही कुलदेवी का स्थान भी बनाया जाता था और मूर्ति की स्थापना होती थी ऐसाहगढ़ ही तँवर गढ़ दुर्ग के पूर्व दिशा में टेकरी पर तोमर वंश की कुलदेवी "" चिलाय माता"" की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई जहां आज टेकरी पर शानदार मंदिर बना हुआ है और मंदिर की भव्यता में निरंतर वृद्धि होती जा रही है दुर्ग और माता के मंदिर की दोनों पहाड़ियों के बीच लगभग 1 किलोमीटर की एयर डिस्टेंस हैl मंदिर के प्रांगण से दुर्ग की भग्नावस्था मैं गुंबद आज भी दिखाई देते हैंl मुझे मेरे मित्र परितोष सिंह तोमर एवं गांव के प्रतिष्ठित लोगों के साथ दिसंबर 2010 में दुर्ग के खंडहरों में जाने का सौभाग्य मिला हैl

             " चिलाय माता" की मूर्ति स्थापित होने एवं मंदिर के निर्माण के साथ ही वहां पूजा-अर्चना भी शुरू हो गई, इतने बीहड़ वाले क्षेत्र में स्थित मंदिर पर साधुओं का आना जाना और पूजा का क्रम चलने लगा।

              लगभग आज से 600 वर्ष पूर्व की बात है हरिद्वार में कुंभ मेला लगा, जैसे की परंपरा है प्रयागराज, नासिक, उज्जैन एवं हरिद्वार में कुंभ मेलों का आयोजन होता है और हिंदू समाज के श्रद्धालुओं के साथ ही देश भर के साधु-संत पवित्र नदियों में स्नान हेतु जाते हैंl कुंभ मेले के इस अवसर पर माता के मंदिर पर चार से पांच साधुओं निवास कर रहे थे, सभी ने कुंभ मेले में जाने की मंशा जाहिर की जिस पर प्रश्न पैदा हुआ कि. "" मां"" की सेवा पूजा कौन करेगाl उस समय वहां मौजूद साधुओं में तपस्वी सिद्ध बाबा महात्मा शंकर दास जी भी थे वृद्ध होने के कारण उनका हरिद्वार जाना बड़ा कठिन लग रहा था तब उन्होंने स्वेच्छा से शेष साधुओं को हरिद्वार भेज दिया और स्वयं माता की सेवा हेतु मंदिर पर ठहर गए, लेकिन मन में गंगा स्नान की इच्छा उन्हें बेचैन कर रही थीl

             गंगा के जल से स्नान की इच्छा इतनी बलवती हो गई की माता के मंदिर में कठोर तपस्या में लीन हो गए, संत की कठिन तपस्या स्वीकार कर ”चिलाय माता" ने उन्हें स्वप्न में स्वरूप दर्शन दिए और कहा कि मंदिर के पीछे बीहड़ों से गंगा की धारा प्रकट होगी वहां जाकर स्नान करो  और अपनी गंगाजल से स्थान की अभिलाषा पूरी करोl सुबह महात्मा वहां गए जहां गंगा प्रकट हुई थी वह गंगा की धारा आज भी अनवरत बह रही है और पास ही चंबल में मिलती हैl

          ”भवेश्वरी माता" के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध इस स्थान पर प्रतिदिन श्रद्धालु आकर स्नान करते हैं और गंगाजल अपने साथ ले जाते हैंl 29 अक्टूबर 2017 को मुरैना के तत्कालीन सीएसपी श्री सुरेंद्र सिंह तोमर के साथ मुझे इस स्थान पर जाने का सौभाग्य मिला, गंगा जल का आचमन किया और पवित्र जल साथ लाया जो आज भी मेरे पास सुरक्षित हैl



               18 जून 2019 को कुलदेवी मंदिर ऐसाहगढ़ में दिनेश सिंह तोमर नगरा बना के द्वारा राजा रामशाह तोमर के बलिदान दिवस पर भव्य कार्यक्रम आयोजन किया गया जिसमें तंवरघार  अलावा मालवा ग्वालियर राजस्थान दिल्ली उत्तरप्रदेश दो हज़ार अधिक क्षत्रिय समाज के लोग शामिल हुये।


               13 जून 2021" प्रताप जयंती" को शहादत स्थल रक्त ताल  हल्दीघाटी से शहीद स्थल की पवित्र माटी को ”कलश द्वारा” पराक्रम यात्रा""  के माध्यम से चित्तौड़गढ़ रतलाम, नागदा उज्जैन, मक्सी गुना, शिवपुरी, मोहना ग्वालियर, गोहद से मानहढ से गोरमी से बुधारा से पोरसा से औरेठी से डोंडरी से नगरा तिराहा से कुरैठा से महुआ से रछेड़ तिराहा से अंबाह से मुरैना से नेहरावली सिकरवारी से मृगपुरा से दिमनी होकर कुल देवी चिलाय माता के मंदिर ऐसाहगढ़ के पास 18 जून 2021 को पवित्र  कलश को गंगा चंबल मिलन स्थान पर पवित्र जल में प्रवाहित किया जाएगाl



            ज्ञातव्य हो कि 18 जून 1576 को हल्दीघाटी के इस ऐतिहासिक युद्ध में ग्वालियर के अंतिम राजा रामशाह तोमर अपने तीन पुत्रों 1 पुत्र और चंबल घाटी के सैकड़ों राष्ट्रवीर सैनिकों के साथ शहीद हुये थे।

संयोजक- “पराक्रम यात्रा”

श्री गोपाल सिंह राठौड़

एडवोकेट एवं पूर्व प्राचार्य चित्तौड़गढ़ राजस्थान


यह जानकारी हमें भेजी गई थी दिनेश सिंह तोमर के द्वारा। ऐसी ही रोचक जानकारी के लिये बने रहिये हमारे साथ।

No comments: