ग्वालियर। पूरे देश में 15 अगस्त 1947 लोग आजाद होने की खुशियां मना रहे थे लेकिन एक शहर था जहां पर इस दिन भी ध्वजारोहण कार्यक्रम नहीं किया गया। वो शहर था ग्वालियर। 1947 में 15 अगस्त को अंग्रेजों ने भारत की बागडोर औपचारिक तौर पर भारत की जनता के सुपुर्द की, तो 15 अगस्त की सुबह से सारे देश में तिरंगा झंडा फहरा कर जश्न मनाया गया। लेकिन उस समय महाराज जीवाजीराव सिंधिया विलय होने तक इसे टालना चाहते थे। हालांकि बाद में विवाद सुलझा और 10 दिन बाद, 25 अगस्त को ग्वालियर में तिरंगा फहराकर आजादी का जश्न मनाया गया।
जश्न की हो चुकी थी तैयारियां
15 अगस्त को आजादी मिलने की खुशी ग्वालियर में भी उमड़ रही थी। जश्न मनाने की सारी तैयारियां थीं। जश्न घर-घर में मनाया भी गया,लेकिन संवैधानिक विवाद के चलते तिरंगा नहीं फहराया जा सका। इसका कारण था रियासतों के विलय की औपचारिकता पूरी नहीं हुई थी।
उन दिनों ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा जीवाजीराव सिंधिया का मानना था कि जब तक देश का संविधान सामने नहीं आता और रियासतों का स्वरूप स्पष्ट नहीं होता तब तक रियासत में सिंधिया राजवंश के स्थापित प्रशासन को ही माना जाएगा। इसलिए महाराज चाहते थे कि सिंधिया रियासत का ध्वज ही आजादी पर फहराया जाना चाहिए।
उस समय हालात ऐसे थे कि कांग्रेसी ये मानने को तैयार नहीं थे,वो तिरंगा फहरा कर ही आजादी का समारोह मनाना चाहते थे। लिहाजा 15 अगस्त के दिन निजी तौर पर तो ग्वालियर की जनता ने आजादी का जश्न मनाया, लेकिन न तिरंगा फहराया जा सका,न सिंधिया राजवंश का ध्वज। इसके बाद खुद जवाहर लाल नेहरू ग्वालियर आए और महाराज जीवाजीराव सिंधिया को मध्य भारत प्रांत के राजप्रमुख के रूप में शपथ दिलाई।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2Y2QPE2
No comments:
Post a Comment