क्या हम वाकई में आजाद हैं क्या हमारा संविधान इस बात की हमें आजादी देता है और क्या प्रशासनिक स्तर पर हमारी सुरक्षा की गारंटी हमें दी जाती है कि हम जहां पर भी हैं और जो भी हमारे मौलिक अधिकार हैं उनका हम प्रयोग करेंगे और उनका प्रयोग करने के लिए हम स्वतंत्र हैं उनका प्रयोग करने पर हम किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करेंगे ? अथवा हमें डराया धमकाया तो नहीं जाएगा ? हमारा किसी प्रकार से शोषण तो नहीं किया जाएगा ? मारा पीटी नहीं की जाएगी? सरेआम हमें भेज नहीं किया जाएगा? यदि ऐसा किया जाता है ? तो निश्चित ही आप डर कर जी रहे हैं?अथवा हमारा प्रशासनिक स्तर पर दोहन हो रहा है . हमारे मौलिक अधिकारों के बारे में हमें खुद के जानकारी नहीं है अथवा हम डरते हैं इस बात को लेकर कि कहीं हमारे साथ में कोई ऊंच-नीच ना हो जाए और भी बहुत सी बातें हैं जो हमें संविधान के प्रति निष्ठा रखने को तो कहती हैं परंतु इस बात की कोई भी गारंटी देने के लिए हमें तैयार नहीं होता कि हम सुरक्षित हैं। हम अपने ही देश में हम अपने ही परिवार के लोगों के हाथों अपने रिश्तेदारों मित्रों के हाथों शोषित हो रहे हैं और हम जहां पर भी यह देखते हैं तो ऐसा लगता है कि कानून या संविधान का माहौल सा उड़ाया रहा है।
अशिक्षा व् गरीबी
अपनी ही बात कहने के लिए मोहताज हैं हम हम अपनी बात को सही तरीके से समाज के सामने सरकार के सामने अथवा लोगों के सामने नहीं रख पाते हैं कारण उसका यह है कि, हमें संविधान के द्वारा जो अधिकार प्रदत्त किए गए हैं उनके बारे में हमें बिल्कुल जानकारी नहीं है अथवा उनको हमें किसी न किसी रूप में बताया नहीं जाता है और उन बातों को छुपाया जाता है जिससे हम एक निरीह बनी रहे और शक्तिशाली लोग उसका दुरुपयोग करते रहें। यह सबसे बड़ी भारत में समस्या है कि गरीब आदमी पढ़ाई के लिए मोहताज है। वह शिक्षा हासिल नहीं कर सकता है। वह अपने मौलिक अधिकारों के बारे में भी नहीं जान पाता है हनन होता रहता है उन अधिकारों का जो अधिकार उसको हमारे संविधान में प्रयुक्त किए गए हैं। गरीब और निचले तबके के लोग इस बात से बिल्कुल अनजान रहते हैं कि, उनके क्या-क्या अधिकार हैं संविधान ने उनको क्या कुछ दिया है। अशिक्षा और गरीबी के कारण वह अधिकार दब गए हैं। हमें आवश्यकता है कि दवे और कुचले गरीब लोगों को समाज की मूल धारा के साथ जोड़ कर चलना होगा। उनको वह सब चीज प्रदान करनी होगी जो उनके मौलिक अधिकारों के अंतर्गत आती है और उनको व शिक्षा देनी होगी जो अन्य के लिए दी जाती है।
शोषण
शोषण एक ऐसा शब्द है जिसको सुनकर ही रूह कांप जाती है हम और आप कहीं ना कहीं कभी ना कभी किसी ना किसी से शोषित हुए हैं अथवा हो रहे हैं। शोषण कई प्रकार का होता है। आर्थिक शोषण, मानसिक शोषण, शारीरिक शोषण, शोषण कभी भी किसी भी व्यक्ति के लिए ठीक नहीं होता है। उसके लिए यह एक गहरी खाई है और हम और हमारे समाज के लिए एक चिंता का विषय है, यदि एक पढ़े लिखे इंसान के द्वारा किसी का शोषण किया जाता है तो यह निश्चित ही बेकार और बकवास स्तर के व्यक्ति के द्वारा ही किया जाता है। उसे शिक्षा की बिल्कुल फर्क नहीं है ना ही उसके परिवार द्वारा दिए गए संस्कारों की झलक उसमें दिखाई देती है यदि कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति भी चाहे वह स्त्री हो या वह पुरुष हो किसी से किसी प्रकार का शोषण जेलता हो वह दोनों प्रकार के अपराधी हैं। एक तो वह शोषण करने वाला अपराधी है। दूसरा वह जो उसका शोषण झेल रहा है। ऐसे शोषित व्यक्ति अथवा शोषण करने वाले व्यक्ति सभ्य समाज का कभी भी निर्माण नहीं कर सकते हैं। ना तो वह अपनी संतान को वह संस्कार और शिक्षा दे सकते हैं जिसकी उनको आवश्यकता है। वह वही सीखते हैं जो उसके पिता और माता के मध्य होता है ऐसे में हमें चाहिए कि दोनों की मानसिक स्थिति को जानकर एक फैसला किया जाए जिससे कि दोनों ही महफूज हो सके।शोषित और शोषण करने वाला भी प्राय देखने में आता है कि समाज और रीति-रिवाजों के चलते व्यक्ति शोषित होता रहता है कुछ कह नहीं पाता है अथवा परिवार की अन्य समस्याएं भी रहती हैं जिसके कारण वह है उनका प्रति उत्तर भी नहीं दे पाता है। ऐसे में उस व्यक्ति को भरपूर सलाह जानकारी और कानूनी मदद की आवश्यकता होती है , जो हम चाह कर भी नहीं दे पाते हैं अथवा देना नहीं चाहते हैं। यह हमारे लिए और हमारे समाज के लिए घातक है। हमें ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे कि वह शोषित व्यक्ति अपने अधिकारों के बारे में जानकर अपने भावी जिंदगी को लेकर कुछ ऐसे कदम प्रभावी रूप से उठाए जिससे कि उसकी जिंदगी में खुशियों का वास हो तथा उसको कोई मानसिक अथवा शारीरिक रूप से शोषित न कर सके और वह अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जी सके अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग कर सकें जो उसको उसके संविधान द्वारा प्रदत्त किए गए हैं।
बाल मजदूरी
हमारे आसपास प्राय देखने में आता है कि बाल मजदूरी की प्रथा अभी भी चल रही है। यदि हम सचेत ना हुए और बालकों को उनके अधिकार ना दिए गए तो निश्चित रूप से यह अनिश्चितकालीन के लिए आगे भी ऐसे ही चलती रहेगी। बालकों का शारीरिक एवं मानसिक शोषण होता रहेगा उनसे बाल मजदूरी कराते रहेंगे तथा हमारे एक सभ्य समाज का निर्माण का सपना अधूरा ही रहेगा। हम कहीं पर भी रहे यहां रहें या वहां रहे हम देखते ही हैं कि छोटे बच्चे चाय की दुकान हो, पान की दुकान हो. गुटका की दुकान। हो कोई होटल हो, परचुनी की दुकान हो वहां पर काम करते मिल ही जाएंगे और उनका शोषण दुकानदारों मालिकों द्वारा ऐसा किया जाता है कि अगर कोई देखे तो उनकी रूह कांप जाए। खाना ना देना, काफी देर तक उनसे काम कराना, काम के बदले उनको उचित पैसे भी ना देना , उनके साथ मारपीट करना ऐसी घटना है आमतौर पर देखने को मिलती है। अगर हम संविधान की बात की जाए तो यहां पर हमें हमारे समाज के द्वारा ही संविधान का माहौल उड़ाते हुए देखा जा सकता है जो हमारा सभ्य समाज है जिसको हम सभ्य समाज कहते हैं वही हमारे संविधान का मजाक उड़ाते हैं . कानून का मजाक उड़ाते हैं तथा ठेंगा दिखाते हैं और यह दिखाया जाता है कि हमारा कानून कुछ नहीं कर सकता है फिर भी हमें ऐसे संविधान पर क्या ऐसे कानून पर ऐसी निष्ठा रखनी चाहिए जो हमारे मौलिक अधिकारों का हनन करें। संविधान का कोई दोष नहीं है यहां पर कानून की बात है कानून अपना ढंग से काम नहीं करता है जो काम उसको करना चाहिए वह बिल्कुल नहीं करता है। जिससे कि शोषित व्यक्ति का मनोबल गिरता है और ऐसा लगता है कि संविधान में जो मौलिक अधिकार दिए गए हैं वह मात्र एक दिखावा है। इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है हम इस प्रकार से चुप रह कर एक शब्द और प्रगतिशील समाज का निर्माण कभी नहीं कर सकते हैं इसके लिए हमें बालकों की शिक्षा के ऊपर विशेष ध्यान देना होगा तथा उनके मौलिक अधिकारों को उनके द्वारा प्रयोग करना सीखलाया जाना होगा तभी हम एक निश्चित तौर पर विश्व के सबसे बड़े संविधान देश के तौर पर विश्व में अपनी जगह और पहचान बना सकते हैं।
हमारे आसपास प्राय देखने में आता है कि बाल मजदूरी की प्रथा अभी भी चल रही है। यदि हम सचेत ना हुए और बालकों को उनके अधिकार ना दिए गए तो निश्चित रूप से यह अनिश्चितकालीन के लिए आगे भी ऐसे ही चलती रहेगी। बालकों का शारीरिक एवं मानसिक शोषण होता रहेगा उनसे बाल मजदूरी कराते रहेंगे तथा हमारे एक सभ्य समाज का निर्माण का सपना अधूरा ही रहेगा। हम कहीं पर भी रहे यहां रहें या वहां रहे हम देखते ही हैं कि छोटे बच्चे चाय की दुकान हो, पान की दुकान हो. गुटका की दुकान। हो कोई होटल हो, परचुनी की दुकान हो वहां पर काम करते मिल ही जाएंगे और उनका शोषण दुकानदारों मालिकों द्वारा ऐसा किया जाता है कि अगर कोई देखे तो उनकी रूह कांप जाए। खाना ना देना, काफी देर तक उनसे काम कराना, काम के बदले उनको उचित पैसे भी ना देना , उनके साथ मारपीट करना ऐसी घटना है आमतौर पर देखने को मिलती है। अगर हम संविधान की बात की जाए तो यहां पर हमें हमारे समाज के द्वारा ही संविधान का माहौल उड़ाते हुए देखा जा सकता है जो हमारा सभ्य समाज है जिसको हम सभ्य समाज कहते हैं वही हमारे संविधान का मजाक उड़ाते हैं . कानून का मजाक उड़ाते हैं तथा ठेंगा दिखाते हैं और यह दिखाया जाता है कि हमारा कानून कुछ नहीं कर सकता है फिर भी हमें ऐसे संविधान पर क्या ऐसे कानून पर ऐसी निष्ठा रखनी चाहिए जो हमारे मौलिक अधिकारों का हनन करें। संविधान का कोई दोष नहीं है यहां पर कानून की बात है कानून अपना ढंग से काम नहीं करता है जो काम उसको करना चाहिए वह बिल्कुल नहीं करता है। जिससे कि शोषित व्यक्ति का मनोबल गिरता है और ऐसा लगता है कि संविधान में जो मौलिक अधिकार दिए गए हैं वह मात्र एक दिखावा है। इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है हम इस प्रकार से चुप रह कर एक शब्द और प्रगतिशील समाज का निर्माण कभी नहीं कर सकते हैं इसके लिए हमें बालकों की शिक्षा के ऊपर विशेष ध्यान देना होगा तथा उनके मौलिक अधिकारों को उनके द्वारा प्रयोग करना सीखलाया जाना होगा तभी हम एक निश्चित तौर पर विश्व के सबसे बड़े संविधान देश के तौर पर विश्व में अपनी जगह और पहचान बना सकते हैं।
स्त्रियों की सुरक्षा
संविधान में इस बात की गारंटी दी गई है कि स्त्रियों को किसी भी प्रकार से कोई कष्ट ना हो उनकी सुरक्षा में किसी भी प्रकार की त्रुटि ना हो, उनके मौलिक अधिकारों को किसी के द्वारा न छीना जाए, उनका हनन ना किया जाए, परंतु यह सब एक किताबी बातें बनकर रह गई हैं। हम आज भी अपने आसपास देखते हैं तो स्त्रियों की सुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं है। मात्र खानापूर्ति की जाती है एक सड़क पर चलती हुई स्त्री की सुरक्षा के प्रति हम कितने गंभीर हैं इसके कई उदाहरण हमें देखने को मिल जाते हैं। जो हमें शब्द समाज का नागरिक ना कहने का हक हमसे छीनते हैं और यहां पर यह बताना अति आवश्यक है कि हम ही वह लोग हैं , जो कि स्त्रियों की सुरक्षा का ढोल पीटते हैं और उनकी इज्जत को तार-तार हम ही लोग करते हैं और दूसरे ग्रह के कोई प्राणी नहीं आते हैं जो स्त्रियों की मान मर्यादा को कहीं क्षीण क्षीण करते हैं। हम ही वह राक्षस हैं जो स्त्रियों के रास्ते में आकर उनको विभिन्न प्रकार से डराते हैं और उनसे नाना प्रकार के आहुतियां भी लेते हैं। यह तो रही सड़क की बात लेकिन अगर हम घर के अंदर की बात करें तो सड़क से बदतर हालत तो स्त्रियों के साथ घर के अंदर होते हैं उनके साथ घर के अंदर ऐसा अमानवीय व्यवहार उनके परिवार जन सास, ननंद, ससुर, देवर, पति, के द्वारा किया जाता है कि पूछिए ही मत, हर किसी को अपनी अपनी फरमाइश पूरी चाहिए चाहे वह स्त्री कामकाजी हो अथवा घरेलू महिला। सबको अपना काम चाहिए यदि पति को समय पर चाय ना मिले तो गाली गलौज उसके मायके वालों को गालियां देना आम बात है इसी बहाने उसके काम काज और चरित्र हनन का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते ऐसा करने को वो अपनी मर्दानगी साबित करने का प्रयास करते है। यदि वह स्त्री अपने सहकर्मी से जरा बात कर ले तो उसको बाजारू और चरित्रहीन औरत तक कह दिया जाता है। अगर वह फोन पर किसी से कुछ अपने काम की बात कर ले तो उसको निर्लज्ज , बेशरम कहा जाता है। इस प्रकार से उसका शोषण सड़क से ज्यादा घर के अंदर होता है जो बहुत ही शर्मनाक है। हमारे लिए , हम ही हैं वह जो उसका शोषण करते हैं। स्त्रियों को तो देवी माना गया है मानव की उत्पत्ति का आधार माना गया है , लेकिन मानव क्या करता है उसी उत्पत्ति के आधार को विभिन्न प्रकार से जलील करता है , अपमानित करता है और नाना प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप लगाकर स्त्री के कोमल मन को कई प्रकार से ठेस पहुंचाता है। ऐसा अनपढ़ों के साथ में होता तो कुछ कहा भी जाता कि चलो अनपढ़ है शिक्षा का ज्ञान नहीं है लेकिन यहां पर ऐसे कई उदाहरण हैं जो पढ़े लिखे व्यक्ति हैं , अधिकारी हैं , बिजनेसमैन है। वह अपने मर्द होने का फायदा सिर्फ और सिर्फ स्त्रियों पर दिखाते हैं और यह भी नहीं देखते कि यदि वह ऐसा अपनी पत्नी माता बहन के साथ कर रहे हैं तो उनकी संतान भी तो ऐसा देख रही है वही संतान जिसको उन्होंने पैदा किया है आगे चलकर वही संतान निश्चित रूप से जो छोटे में सीखेगी वही अपनी पत्नी माता बहन के साथ में भी करेगी हम यहां पर भूल जाते हैं कि हम एक पढ़े लिखे सभ्य समाज के एक जिम्मेदार नागरिक हैं जो हम अपनी जिम्मेदारी से विमुख होकर जो काम हम से नहीं बन पड़ रहा है उसको दूसरे से भी नहीं करना पसंद करते हैं और जब हम ऐसा करने में असफल रहते हैं तो दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगते हैं क्या यही हमारी शिक्षा का आधार है क्या हमारे संविधान में हम को यह अधिकार दिए हैं कि हम किसी को भी अपमानित कर सकें किसी को भी सूचित कर सके किसी को भी गाली गलौज दें अथवा किसी के भी मारपीट करें किसी के मन को ठेस पहुंचाए कदापि नहीं उसको उसके किए की सजा कानूनी रूप से और सामाजिक रूप से निश्चित तौर पर मिलनी चाहिए यदि उसको ऐसी सजा मिलेगी तो समाज के अन्य लोगों में इस प्रकार का संदेश जाएगा और सकारात्मक नतीजे हमारे सामने आएंगे।
जय हिन्द
वन्दे मातरम
नोट : यह लेखक के निजी विचार है इसका किसी की निजी जिंदगी से कोई सरोकार नहीं है यदि इसका किसी की जिंदगी से समनता होती है तो ऐसे मात्रा संयोग कहा जायेगा। इस लेख का मकसद किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाना नहीं है।
संविधान में इस बात की गारंटी दी गई है कि स्त्रियों को किसी भी प्रकार से कोई कष्ट ना हो उनकी सुरक्षा में किसी भी प्रकार की त्रुटि ना हो, उनके मौलिक अधिकारों को किसी के द्वारा न छीना जाए, उनका हनन ना किया जाए, परंतु यह सब एक किताबी बातें बनकर रह गई हैं। हम आज भी अपने आसपास देखते हैं तो स्त्रियों की सुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं है। मात्र खानापूर्ति की जाती है एक सड़क पर चलती हुई स्त्री की सुरक्षा के प्रति हम कितने गंभीर हैं इसके कई उदाहरण हमें देखने को मिल जाते हैं। जो हमें शब्द समाज का नागरिक ना कहने का हक हमसे छीनते हैं और यहां पर यह बताना अति आवश्यक है कि हम ही वह लोग हैं , जो कि स्त्रियों की सुरक्षा का ढोल पीटते हैं और उनकी इज्जत को तार-तार हम ही लोग करते हैं और दूसरे ग्रह के कोई प्राणी नहीं आते हैं जो स्त्रियों की मान मर्यादा को कहीं क्षीण क्षीण करते हैं। हम ही वह राक्षस हैं जो स्त्रियों के रास्ते में आकर उनको विभिन्न प्रकार से डराते हैं और उनसे नाना प्रकार के आहुतियां भी लेते हैं। यह तो रही सड़क की बात लेकिन अगर हम घर के अंदर की बात करें तो सड़क से बदतर हालत तो स्त्रियों के साथ घर के अंदर होते हैं उनके साथ घर के अंदर ऐसा अमानवीय व्यवहार उनके परिवार जन सास, ननंद, ससुर, देवर, पति, के द्वारा किया जाता है कि पूछिए ही मत, हर किसी को अपनी अपनी फरमाइश पूरी चाहिए चाहे वह स्त्री कामकाजी हो अथवा घरेलू महिला। सबको अपना काम चाहिए यदि पति को समय पर चाय ना मिले तो गाली गलौज उसके मायके वालों को गालियां देना आम बात है इसी बहाने उसके काम काज और चरित्र हनन का मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते ऐसा करने को वो अपनी मर्दानगी साबित करने का प्रयास करते है। यदि वह स्त्री अपने सहकर्मी से जरा बात कर ले तो उसको बाजारू और चरित्रहीन औरत तक कह दिया जाता है। अगर वह फोन पर किसी से कुछ अपने काम की बात कर ले तो उसको निर्लज्ज , बेशरम कहा जाता है। इस प्रकार से उसका शोषण सड़क से ज्यादा घर के अंदर होता है जो बहुत ही शर्मनाक है। हमारे लिए , हम ही हैं वह जो उसका शोषण करते हैं। स्त्रियों को तो देवी माना गया है मानव की उत्पत्ति का आधार माना गया है , लेकिन मानव क्या करता है उसी उत्पत्ति के आधार को विभिन्न प्रकार से जलील करता है , अपमानित करता है और नाना प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप लगाकर स्त्री के कोमल मन को कई प्रकार से ठेस पहुंचाता है। ऐसा अनपढ़ों के साथ में होता तो कुछ कहा भी जाता कि चलो अनपढ़ है शिक्षा का ज्ञान नहीं है लेकिन यहां पर ऐसे कई उदाहरण हैं जो पढ़े लिखे व्यक्ति हैं , अधिकारी हैं , बिजनेसमैन है। वह अपने मर्द होने का फायदा सिर्फ और सिर्फ स्त्रियों पर दिखाते हैं और यह भी नहीं देखते कि यदि वह ऐसा अपनी पत्नी माता बहन के साथ कर रहे हैं तो उनकी संतान भी तो ऐसा देख रही है वही संतान जिसको उन्होंने पैदा किया है आगे चलकर वही संतान निश्चित रूप से जो छोटे में सीखेगी वही अपनी पत्नी माता बहन के साथ में भी करेगी हम यहां पर भूल जाते हैं कि हम एक पढ़े लिखे सभ्य समाज के एक जिम्मेदार नागरिक हैं जो हम अपनी जिम्मेदारी से विमुख होकर जो काम हम से नहीं बन पड़ रहा है उसको दूसरे से भी नहीं करना पसंद करते हैं और जब हम ऐसा करने में असफल रहते हैं तो दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगते हैं क्या यही हमारी शिक्षा का आधार है क्या हमारे संविधान में हम को यह अधिकार दिए हैं कि हम किसी को भी अपमानित कर सकें किसी को भी सूचित कर सके किसी को भी गाली गलौज दें अथवा किसी के भी मारपीट करें किसी के मन को ठेस पहुंचाए कदापि नहीं उसको उसके किए की सजा कानूनी रूप से और सामाजिक रूप से निश्चित तौर पर मिलनी चाहिए यदि उसको ऐसी सजा मिलेगी तो समाज के अन्य लोगों में इस प्रकार का संदेश जाएगा और सकारात्मक नतीजे हमारे सामने आएंगे।
जय हिन्द
वन्दे मातरम
नोट : यह लेखक के निजी विचार है इसका किसी की निजी जिंदगी से कोई सरोकार नहीं है यदि इसका किसी की जिंदगी से समनता होती है तो ऐसे मात्रा संयोग कहा जायेगा। इस लेख का मकसद किसी की भावनाओ को ठेस पहुँचाना नहीं है।
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