वीरांगना लक्ष्मीबाई आज भी है करोड़ों लोगों की प्रेरणा, जानिए - Silver Screen

वीरांगना लक्ष्मीबाई आज भी है करोड़ों लोगों की प्रेरणा, जानिए

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ग्वालियर। देश की प्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की रानी लक्ष्मीबाई के पराक्रम पर लिखी कविता खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी,सभी ने जरूर सुनी होगी। पर आज इसी वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का जन्म दिवस है। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म यूपी के वाराणसी जिले के भदैनी में 19 नवंबर 1828 को हुआ था। वे बचपन से ही प्रतिभा की धनी थीं। आज झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जंयती के मौके पर शहर में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। हम आज रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी कई चीजें आपको बताने जा रहे हैं।

रानी लक्ष्मीबाई जयंती : ये है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी कुछ बेहद दुर्लभ चीजें

स्थापित है रानी की प्रतिमा
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की संघर्ष गाथा उनके जन्म स्थान यूपी के काशी से ही शुरू होती है। ग्वालियर शहर में स्थित रानी लक्ष्मी बाई स्मारक स्थल पर वीरांगना लक्ष्मी बाई की प्रतिमा स्थापित है। इसमें वह घोड़े पर सवार,पीठ पर अपने बच्चे को बांधे और हाथ में तलवार लिए युद्ध की मुद्रा में हैं। स्मारक की दीवारों पर कई कविता भी देखी जा सकती है।

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प्यार से बुलाते थे मनु
अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का नारा बुलंद करने वाली रानी लक्ष्मीबाई शायद भारतीय स्वंतत्रता संग्राम की पहली वीरांगना थी। लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को यूपी के वाराणसी में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से इन्हें मनु बुलाते थे। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनके मां की मृत्यु हो गई। घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता ने उन्हें अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए। बाजीराव के दरबार में मनु ने अपने चंचल ओर सुंदर स्वभाव से सबका मन मोह लिया। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर लेकिन चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गई।

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शहर पर कर लिया कब्जा
सन 1853 में राजा गंगाधर राव की तबीयत बहुत ज्यादा खराब होने के कारण उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गई। पुत्र गोद लेने के बाद कई दिनों बाद ही राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया। लोग उन्हें प्यार से छबीली बुलाते। 1842 में इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ और ये झांसी की रानी बनीं। लेकिन 1857 में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया।1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झांसी की ओर बढऩा शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया था। लेकिन दो हफ्तों की लडा़ई के बाद ब्रिटीश सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया।

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हालांकि रानी,दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गई। रानी झांसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली। यहां तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई।

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अस्त्र-शस्त्र से शौर्य आता है नजर
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की गाथा आप सभी ने किताबों में पढ़ी और सुनी होगी। लेकिन इस संग्राम की गाथा के प्रतीक रानी लक्ष्मीबाई के अस्त्र-शस्त्र बलिदान मेले में लगाई जा रही एग्जीबिशन में देखी जा सकती है। इन अस्त्र-शस्त्र के माध्यम से रानी का शौर्य और पराक्रम भी नजर आएगा। ये शस्त्र नगर निगम म्यूजियम में रखे हुए हैं, जिन्हें आप देख सकते हैं। इन्हें रानी लक्ष्मीबाई की जयंती पर डिस्प्ले किया जाएगा, जिसके बाद लोग इन्हें देख सकेंगे।

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ग्वालियर में रखीं है ये चीजें
रानी लक्ष्मीबाई के जिरह बख्तर,चेस्ट प्लेट,पंजा,दस्ताना,गुर्ज,खांडा,ऊना,कटार,छड़ी-गुप्ती-रिवाल्वर, पटे, ढाल, हेल्मेट, ऊंटनाली, तेगे। साथ ही तात्या टोपे के झंझाल बंदूक, तोड़ेदार बंदूक, कावरिन बंदूक, तलवार, तमंचा, कटार, भाले, सांग, छुरी, बछीफल।

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