ग्वालियर। शहर के गंभीर मुद्दों पर चर्चा के लिए 19 जुलाई से अब तक परिषद की 11 बैठकें हो चुकी हैं, जिन पर नगर निगम द्वारा 6 लाख रुपए से अधिक खर्च किए गए हैं, इसके बावजूद नतीजा सिफर है। बैठक में 8 बिंदुओं पर निर्णय होना था, लेकिन अभी तक न तो एजेंडा पूरा हो पाया है, न ही कोई निर्णय हुआ। जो ठहराव हुए भी हैं उन पर अधिकारियों ने कोई कार्रवाई ही नहीं की है। ऐसे में इन बैठकों के औचित्य पर सवाल उठने लगे हैं। अब 12 सितंबर को परिषद की अगली बैठक होना है।
भाजपा पार्षदों ने हस्ताक्षर कर विशेष सम्मेलन बुलाने के लिए पत्र सभापति राकेश माहौर को सौंपा था। जिस पर सभापति ने 19 जुलाई को 8 बिंदुओं के एजेंडे को शामिल किया था। जिन बिुंदओं पर चर्चा होनी थी, उनमें अमृत योजना द्वारा कराए जा रहे कार्य, ईको ग्रीन द्वारा शहर में की जा रही सफाई व्यवस्था, सीवर के संधारण कार्य, कई महीनों से शहर में गंदे पानी की समस्या है, अवैध तलघरों की सूची, कहां पार्किंग हो चुकी है, पेयजल संकट वाले क्षेत्रों में नलकूप खनन की व्यवस्था और जो टेंडर होने के बाद भी ठेकेदारों ने काम शुरू नहीं किए हैं, ऐसे ठेकेदारों को ब्लैक लिस्टेड करने की कार्रवाई पर चर्चा होनी थी, लेकिन अभी तक सिर्फ 5 बिंदुओं पर ही चर्चा हो पाई है। जो चर्चा हुई उसमें भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सभापति के आदेशों का पालन नहीं
सभापति ने कई बार निगम अधिकारियों को आदेश दिए, लेकिन उनका पालन नहीं हुआ। बार-बार सभापति द्वारा बैठकों में कहा गया कि यह शर्म की बात है कि अधिकारी परिषद के आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं।
एक पल नाराजगी, अगले पल तारीफ
परिषद में निगम अधिकारियों द्वारा आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। जो ठहराव हुए उन पर कोई अमल नहीं किया गया। बैठकों में कई बार ऐसा हुआ जब निगम कमिश्नर संदीप माकिन सहित अन्य अधिकारी बैठक में समय पर नहीं पहुंचे। इसको लेकर परिषद में पार्षदों ने हंगामा किया और अधिकारियों पर लापरवारही बरतने का आरोप लगाया, लेकिन जब कार्रवाई की बात होती उसके अगले ही पल पार्षद खड़े होकर निगम कमिश्नर को धन्यवाद ज्ञापित कर देते हैं, जिसके कारण फिर बात आई गई हो जाती है।
ऐसी बैठकों का क्या औचित्य
विशेष सम्मेलन में सिर्फ तय बिंदुओं पर ही चर्चा होनी चाहिए। बैठकों में जो कार्यवृत्ति की गई उसकी पुष्टि ही नहीं कराई गई है, ऐसे में ठहराव पर अधिकारी कार्रवाई ही नहीं करेंगे। अभी जो बैठकें हुई हैं, इतनी तो पूरे साल में नहीं हुईं। अगर मिनट्स ही नहीं बने तो ऐसी बैठकों का क्या औचित्य है।
कृष्णराव दीक्षित, नेता प्रतिपक्ष नगर निगम
ठहराव पर अमल नहीं
बैठक का जो एजेंडा है, उस पर चर्चा न कर दूसरे बिंदुओं पर चर्चा शुरू हो जाती है। दरअसल, निगम अधिकारी वार्डों में जो समस्याएं हैं उन्हें दूर नहीं करते हैं, जिसके कारण पार्षद सीवर और सफाई जैसे मुद्दे उठाते हैं और जो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं उन पर चर्चा नहीं हो पाती है। परिषद में जो ठहराव हुए हैं उन पर भी अमल नहीं हो रहा है, फिर बैठक का मतलब ही क्या है।
सतीश बोहरे, पार्षद भाजपा
निंदा प्रस्ताव आता है तो विचार करेंगे
निगम अधिकारी परिषद के आदेशों पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं करते हैं। अगर परिषद में सदस्य अधिकारियों के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लेकर आते हैं तो उस पर विचार किया जाएगा और अगर सदस्य लिखित में अधिकारियों की शिकायत करेंगे तो कार्रवाई के लिए पत्र शासन को भेजा जाएगा।
राकेश माहौर, सभापति
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