इंदौर का सार्वजनिक मारपीट कांड - Silver Screen

इंदौर का सार्वजनिक मारपीट कांड

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बहुत ही शर्मनाक बहुत ही घटिआ सोच वाले लोग जब विधानसभा में जाकर बैठेंगे तब क्या हम इनसे कुछ अच्छी उम्मीद लगायी जा सकती है।  लोगो ने सोचा होगा की समाज और देश प्रदेश या शहर का भला होगा पर पछताबे के अलावा कुछ नहीं मिला होगा।  

बीते दिनों इंदौर में हुए सार्वजनिक मारपीट कांड में कुछ लोगो की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी हुयी थी।  राष्ट्रीय पार्टी के एक विधायक के द्वारा सरे आम एक सरकारी अधिकारी की बल्ले से मारपीट की गयी थी जिसका वीडियो सामने आने तथा मीडिया कर्मिओ के सामने की ये वो घटना थी जिसको हमको अपने आप तथा अपने चुने हुए विधायक के द्वारा किये गए काण्ड पर निच्छित  रूप से पछतावा होना लाज़िमी है।  वीडियो मौजूद था इसलिए ये पुलिस FIR हुयी वरना मामला वही पर निबट जाता। वीडियो  साफ़ सकते हैं की किस तरफ विधायक के द्वारा एक सरकारी कर्मचारी को सरेआम बल्ले से पीटा गया। वही इस घटना के लिए सरकारी अमला यानि की इंदौर नगर निगम भी जिम्मेदार रहा है।  परन्तु प्रदेश में दूसरी पार्टी की सरकार होने से मामला  तूल पकड़ गया और विधायक की गिरफ़्तारी संभव हो सकी। इसमें पुलिस की भी लापरवाही भी बहुत रही, तस्वीर में साफ़ दिख रहा है की पोलिसवाले कैसे तमाशबीन बने रहे किसी ने विधयक को रोकने की कोई कोसिस नहीं की है। क्या पुलिस इतनी लाचार है की अन्याय को देखती रहे या फिर अन्याय का साथ देने के लिए ये अशोक धारण कर वर्दी पहनी हुयी है। पुलिस की अकर्मण्य छवि इस समाज और कानून के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो सकती है। 



पुलिस के द्वारा मजबूरी वश तथा प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने से प्रकरण दर्ज कर आरोपी विधायक को गिरफ्फ्तार कर जेल भेजा गया, जब आरोपी को कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया जा रहा था तब माहौल बहुत ही ख़राब था और कुछ भी हो सकने की उम्मीद लगाई जा रही थी।  उसके बाबजूद भी विधायक के समर्थक बड़े पैमाने पर जमा होकर  नारेबाजी कर रहे थे, गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे थे। लेकिन कोर्ट में पेशी के बाद विधयक को ११ जुलाई तक न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया। 

मामला राष्ट्रीय पार्टी के विधायक का था, सो सब पार्टी वाले जी जान से उसको बचने में लग गए और दोष उसका नहीं होना बताने लगे, यहाँ तक की प्रदेश के पूर्व CM चौहान भी इस मामले में कुछ भी कहने से बचते आये, यहाँ तक नहीं कहा की घटना पर अफ़सोस है, ऐसा नहीं होना चाहिए , यदि कुछ कहते तो दिल्ली से मामा की चड्डी उतर दी जाती। मतलब साफ़ है की अगर अन्याय होता है तो होने दो कुछ न बोलो ,बस अंधे, बहरे और गूंगे बने रहो, पैसा और पद मिल जाये तो कुछ भी करने और अपना ईमान धरम बेचने को तैयार रहो और कर दो। 

सत्ता का नशा और पद का दुरपयोग करना तो नेताओ से सीखो , आरोपी विधायक जेल से बाहर आने के बाद भी अपने किये पर कोई पछतावा, मलाल नहीं है , बड़ी शान और अकड़ के सार्वजानिक रूप से इंटरव्यू दे रहा है की मुझे अपने किये पर कोई पछतावा नहीं है।  बड़ा ही आत्ममंथन का बिषय  है की एक जिम्मेदार और संवैधानिक पद आसीन व्यक्ति ऐसा कैसे कह सकता है। ये निश्चित रूप से ही समाज के द्वारा निर्धारित माप दंड से विपरीत की कहानी है जो हमारे समाज को एक गहरे अंधकार की खाई में धकेल देती हैं। 

जब एक बाप ही अपने पुत्र मोह में न्याय अन्याय में फर्क करना छोड़ दे तथा उसकी गलतियों को नजरअंदाज करे तब हम ये निश्चित रूप से कह सकते हैं की उसने अपने पुत्र को ऐसे रस्ते पर धकेल दिया है जिसपे  चलने वाला एक दिन अपनी बनी हुयी जाल में फसकर वही बेमौत मारा  जाता है। लेकिन ये सब एक दिन की घटना नहीं है , इसमें भी कहीं न कहीं राजनीती से ओट प्रेत घटना है उसका कही न कही इंदौर की राजनीती भी शामिल है। 

इस घटना के लिए हम किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहरा   सकते हैं बल्क हम सब इसके लिए जिम्मेदार हैं। हमारा समाज, कानून व्यवस्था, न्याय व्यवस्था सब हैं इसके लिए जिम्मेदार। कोई कठोर  नहीं , है तो उसका पालन नहीं कराया जाता, हम भी पालन नहीं करना चाहते। सबको मलाई चाहिये , यदि हमको एक अच्छे और सच्चे समाज   निर्माण चाहते हैं तो सबको अपना निजी हित का त्याग करना होगा वरना समाज का विनाश होना निश्चित ही है, इस कड़वी सच्चाई को अभी स्वीकार करें या बाद में होना वही है जो हमने तय किया है। 

दोहरे मापदंड वाली कानून व्यवस्था , लचर कानून, सरकारी कठपुतली जैसे सरकारी मुलाज़िम, अंधेर नगरी चौपट राजा वाली गूंगी , बहरी सरकार इत्यादि है जिनको सुधारना बहुत ही मुश्किल हैं परन्तु नामुमकिन नहीं है।  उस देश का भला नहीं हो सकता है जहा पर कमजोर विपक्ष , बिकाऊ मीडिया और भ्रस्ट सरकार।  हमारी मीडिया वो नहीं दिखती जो उसको दिखाना चाहिए बस सरकार की ज़ी हज़ूरी करना है, वरना चैनल बंद।  विपक्ष भी कोई भी मुद्दा सरकार के सामने नहीं रख पता है और सरकार को क्या चाहिए बस यही चाहिए जिससे उसको जो काम करना है वो बिना किसी रोकटोक के करे। 

हम किसी का विरोध नहीं कर सकते हैं क्यूंकि हम पर कार्यवाही की जा सकती है, सवाल भी नहीं पूछ  सकते हैं , सवाल पूछने आज़ादी हैं पर उसके बाद की आज़ादी नहीं है आपके साथ कुछ भी  हो सकता है आपको गुंडे बदमाश धमका सकते हैं आदि आदि। 

हमको आज आत्ममंथन करने की जरुरत है , हम इतना गिर चुके हैं जितना डॉलर के मुकाबले रुपया भी नहीं गिरा है।  हमारा ज़मीर , ईमान , आत्मा मर चुकी है , खोखले और दिखावटी आदर्शो के अलावा हमारे पास कुछ नहीं बचा है आगे  पीढ़ी के लिए। सच में हम कहा से कहा आ गए हैं और पैसा और कुछ निर्जीव चीजें ही हमारे लिए सबकुछ हैं। हमारा आत्म सम्मान पैसे की चमक में दूर कही हमसे जा बैठा है या यु कहें की हमने पैसो की मोटी चादर से ढक दिया है। हमें जो स्कूल में पढ़ाया गया की हमको किसी भी हालत में अपना आत्मसम्मान बनाये रखना है पर हम नहीं रख पा रहे है। 

राजनीती गुजरे ज़माने की बात हो गयी है अब तो सिर्फ और सिर्फ गंदगी का तालाब बन चुका है। किसी को देश, समाज , प्रदेश की फ़िक्र नहीं है , है तो सिर्फ अपनी की  मैं अपना बैंक बैलेंस, प्रॉपर्टी को कैसे बढ़ाऊ ? सरकार भी ऐसे ही लोगो के भरोसे चलती है जो ऐसा करने में  माहिर हैं।  मामा सकुनी की भांति चालें चलके विनाश के ताने बाने बुनते  रहते हैं। विकास का असली मुद्दा कोई नहीं उठता, अगर उठता भी है तो पहले उसमे   मिलने वाले कमिशन के बारे में बात नहीं होती तब तक कोई भी योजना धरातल पर नहीं आ सकती। बड़े बड़े टेंडर में भी मंत्री, नेता, अफसर को बिना घूंस के काम नहीं होता , पर उससे होने वाले नुक्सान को हमेशा की तरह आम जनता झेलती है , मरती है, टैक्स भर्ती है, मज़े और कोई करता है। आम जनता लुटती रहती है विरोध नहीं करती है बस सहती है। 

पुलिस को पावर है की वो अपराध करने वाले को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाये। मेरा मानना है की अगर सब ईमानदारी से काम करें तो समाज में फैली बहुत सी बुराईयां  अपने आप मिट जाएँगी। न्याय वयवस्था भी चुस्त दुरुस्त हो पर लगता नहीं है की ऐसा हो पायेगा। आशा है हम सब अपने अपने कर्तव्य को समझे और उनका अनुशरण करें। 

धन्यबाद 

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