कब छूटेगी स्त्री द्वेष की प्रवृत्ति - Silver Screen

कब छूटेगी स्त्री द्वेष की प्रवृत्ति

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कब छूटेगी स्त्री द्वेष की प्रवृत्ति

कई साल पहले की बात है हरियाणा में हुए एक बलात्कार कांड के सिलसिले में तब के मुख्यमंत्री श्री भजन लाल ने यह बयान दिया था कि महिलाएं इसी के लिए होती हैं वास्तव में उन्होंने जिन शब्दों का प्रयोग किया था वह और भी ज्यादा जगन थे उस वक्त इस किस्म का स्त्री द्वेष अपने समय से बहुत आगे की चीज था दरअसल नेहरू के दौर में के बाद पैदा हुए हमारे नेता लगातार ऐसी ही प्रतिगामी भाषा बोलने वाले रहे लेकिन हमारा मीडिया भी लैंगिक मसलों पर कभी बहुत संवेदनशील नहीं रहा है , यही कारण है कि आए दिन इस प्रकार के विवादित बयान नेता सुर्खियों में बने रहने के लिए देते रहते हैं इस किस्म की आपत्तिजनक टिप्पणियां एक शिष्य स्वस्थ समाज के लिए लिहाजा के उपयुक्त नहीं थी लेकिन इन्हें गिरना स्पद भी नहीं माना जाता था, तब भजनलाल को उनके जगन ने शब्दों के प्रयोग पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने थोड़ा झटका था और फिर से चीजें वापस पटरी पर आ गई थी आज के दौर में बात करें तो ऐसे वाक्य में माने जाएंगे लेकिन मोटे तौर पर देखें तो बुनियादी प्रवृत्तियों में अभी कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आया है आज भी औरतों को भोग की वस्तु ही माना जाता रहा है.



नेताओं के बीच यह सोच और भी ज्यादा व्याप्त है डोनाल्ड ट्रंप का उदाहरण यहां मौजूद होगा इन प्रवृत्तियों को वेनस लिया वर्णित प्राथमिकताएं और ज्यादा जटिल बनाने का काम करती हैं जो हमें अपने इतिहास और एक राष्ट्र के बतौर विकास क्रम में विरासत में मिली हैं आक्रांता आर्यों और मूल निवासियों के बीच के पहले संघर्ष का एकीकरण सुबह तोरणीय देवों और श्याम वर्ण अफसरों के बीच लड़ाई के रूप में कर दिया गया है नतीजा जो हिंदू वर्ण क्रम बना वह अनिवार्य है असली ही था हम आमतौर पर सौंदर्य को चमड़ी के रंग से आंख ते हैं |



हम अभी मार्टिन लूथर किंग के ऐसे देश के सपने से काफी दूर हैं जहां लोगों के बारे में उनकी राय चमड़ी के रंग से बनाने के बजाय उनके चरित्र से बनाई जाएगी इसलिए किसी को अचरज नहीं होना चाहिए जब विनय कटियार सौंदर्य को चमड़ी के रंग के अनुपात में आते हैं इस से क्या आशय जब कटिहार 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी के उतरने से होने वाले संभावित सियासी असर से घबराकर बयान दे देते हो जो कि बीजेपी में है कई खूबसूरत स्टार प्रचारक भी हैं उनसे ज्यादा खूबसूरत कई हीरोइनों और कलाकार भी इसमें शामिल हैं हिंदी में उन्होंने गोरी शब्द का इस्तेमाल किया था जिसका अर्थ होता है कि गौर वर्ण वाली मतदान के महत्व पर एक बार वरिष्ठ नेता शरद पवार ने यही लोगों को बैलट पेपर के महत्व के बारे में सूचित किया जाना जरूरी है मत की प्रतिष्ठा बेटी की प्रतिष्ठा से भी अहम है अगर बेटी की इज्जत से समझौता होता है तो यह केवल गांव या समुदाय पर असर डालता है लेकिन वोट की इज्जत से छेड़छाड़ समूचे राष्ट्र को प्रभावित करती है, मतदान के संबंध में उनकी चिंता तो वाजिब है लेकिन तुलना निहायत मूर्खतापूर्ण है |

उनकी पश्चिमी कृत महिला एवं उनके मूल्यों आदि के बारे में राय सबको पता है जिन्होंने एक बार उन्होंने पर कटी महिलाएं कह दिया था इसका मतलब तो महिलाओं के लिए ऐसे घरेलू चिड़िया के रूप में लगाया जा सकता है जिनके पर कतर दिए गए हो तो दूसरे अर्थ कटे हुए बाल वाली महिलाओं के लिए लगाया जा सकता है फिर भी वह कम से कम सुंदर को चमड़ी के रंग से जोड़ कर नहीं देख रहे थे उन्होंने एक बार चर्चित बयान दिया था कि कैसे सांवली दक्षिण भारतीय महिलाओं की खूबसूरती उन्हें आकर्षित करती है इस बयान पर डीएमके की सांसद कनिमोझी भड़क गई थी इतना तो साफ है कि रंगों की पसंद और हमारे नजरिए के बीच गहरा रिश्ता है इन्हीं प्रवृत्तियों और की ओर इशारा करते हुए एक टीवी चैनल ने गोरा बनाने वाली क्रीम ओं के खिलाफ एक साहसिक प्रचार शुरू किया लेकिन रंग के प्रति समाज का पूर्वाग्रह यूं ही खत्म नहीं हो जाता|

50 साल पहले ब्लैक पैंथर एक्टिविस्ट ने इसमें लिखा था कि गोरे लोगों ने काले लोगों का सबसे बड़ा नुकसान है किया है कि सुंदर अपनी मांगों को उनके भीतर उतार दिया है गोरे आदमी और औरतों ने सुंदर के अपने मानदंडों जैसे हल्के रंग के बाल गुलाबी आभा नीली आंखें छरहरी बदन आदि को ऐसा गौरवान्वित किया है कि काले लोग खुद को नापसंद करने लगे कुछ नहीं तू अपने ग्रिटीट्यूड से मुक्ति पाने के लिए गोरा बनाने वाली क्रीम और बाल सीधे करने वाली मशीनों का प्रयोग चालू कर दिया जब शारीरिक सौंदर्य की बात आती है तो पश्चिमी मानदंडों के अनुसार के मामले में हम भारतीय बहुत पीछे रहना कतई स्वीकार नहीं करते हैं हम उन्हीं के मानकों को स्वीकारते और मानते हैं इसका लेना देना संभवत उत्तरी भारत में गोरी चमड़ी वालों के आक्रमण से हो सबसे पहले और अंत में अंग्रेज हिंदू वर्ण और वर्ग तंत्र आज की तारीख में पूरी तरह नस्लवादी है वर्णन की नींव है |

यही हाल मुसलमानों का भी है यहां मूलनिवासी मुसलमान अपने समुदाय के सबसे निचले तबके में आते हैं अवधारणाओं ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया है गोरा और खूबसूरत बनाने वाली क्रीम ओं उत्पादन ओं का लेना देना इन्हीं अवधारणाओं के साथ है बाजार संबंधित शोध अध्ययन इन निष्कर्षों का समर्थन करते हैं संयोग से अपने पिछले अवतार में मैं खुद उनका हिस्सा रहा हूं चंद मीडिया घरानों ने बेशक साहसिक पहल की है लेकिन वह जो कह रहे हैं वैसा उन्हें खुद करके दिखाना भी चाहिए |


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